Friday, July 5, 2013

कुछ तो...

आशाओं के बादल से, एक सपनो का सूरज निकला,
कुछ तो किरने हमारे लिए होंगी...

एहसासों की बहती हुई नदी में, एक चाहतों का जाल बिछाया,
कुछ तो खुशियाँ हमारे लिए फसेंगी...

ज़िन्दगी की टहनियों में उम्मीद के फल लटके थे,
कुछ तो मीठे पल झोली में टपकेंगे...

खावाशियों की उड़ान में एक झोंका परेशानियों का आया,
कुछ तो तकलीफों की चुभन सहनी ही पड़ेगी...